पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के व्यवहारिक उपयोग की प्रवृत्तियों का अध्ययन
Author(s): रजनीकांत साहू और अनिता समल
Abstract: पंचायती राज संस्थाएँ भारतीय लोकतंत्र की नींव हैं, और उनके प्रभावी संचालन में निर्वाचित प्रतिनिधियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। यह प्रभावशीलता तभी संभव है जब प्रतिनिधि न केवल संवैधानिक अधिकारों से अवगत हों, बल्कि उनका व्यवहारिक उपयोग भी करें। प्रस्तुत अध्ययन छत्तीसगढ़ के नवगठित मोहला–मानपुर–अम्बागढ़–चौकी जिले में कार्यरत पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा उनके संवैधानिक अधिकारों के व्यवहारिक उपयोग की प्रवृत्तियों का मूल्यांकन करता है।शोध में कुल 400 प्रतिनिधियों को शामिल किया गया, जिनमें जिला पंचायत (11), जनपद पंचायत (50) तथा ग्राम पंचायत (339) से प्रतिनिधि थे। आंकड़ों का संकलन मानकीकृत प्रश्नावली एवं प्रत्यक्ष साक्षात्कार द्वारा किया गया तथा विश्लेषण प्रतिशत, अपेक्षित–वास्तविक आवृत्तियाँ और काई-स्क्वायर परीक्षण के माध्यम से किया गया।परिणामों से ज्ञात हुआ कि 86.75% प्रतिनिधि अपने अधिकारों का व्यवहारिक उपयोग करते हैं, जबकि 13.25% ऐसा नहीं कर पाते। जिला पंचायत में उपयोग 100%, जनपद पंचायत में 92%, तथा ग्राम पंचायत में 85.55% रहा। काई-स्क्वायर परीक्षण (χ² = 5.87, df = 2, p = 0.053) ने यह संकेत दिया कि यद्यपि अंतर सीमांत स्तर पर है, तथापि पंचायत स्तरों के बीच अधिकारों के व्यवहारिक प्रयोग की प्रवृत्तियों में सांख्यिकीय संभाव्यता पाई गई।यह शोध दर्शाता है कि पंचायत स्तर पर प्रतिनिधियों की सक्रियता उनके प्रशिक्षण, संसाधनों की उपलब्धता और प्रशासनिक पहुँच पर निर्भर करती है, विशेषकर ग्राम पंचायत स्तर पर सशक्तिकरण की महती आवश्यकता है।
रजनीकांत साहू और अनिता समल. पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के व्यवहारिक उपयोग की प्रवृत्तियों का अध्ययन. Int J Political Sci Governance 2025;7(8):82-85. DOI: 10.33545/26646021.2025.v7.i8b.624