मानव विकास के इतिहास में स्त्री का महत्व पुरुष के समान ही रहा है। वास्तव में समाज में महिलाओं की स्थिति, रोजगार और उनके द्वारा किया गया कार्य किसी राष्ट्र की समग्र प्रगति का सूचक है। राष्ट्रीय गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी के बिना किसी देश की सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक प्रगति अवरुद्ध हो जाएगी। तथ्य यह है कि महिलाओं की अधिकांश घरेलू भूमिका आर्थिक गतिविधियों और परिवार के लिए अतिरिक्त आय अर्जित करने के लिए उनके कौशल और श्रम के उपयोग के साथ जुड़ी हुई है, जिससे परिवार एक सभ्य जीवन जी पाता है। महिलाएँ बहुत सारी जिम्मेदारियां साझा करती हैं और परिवार चलाने, पालन-पोषण, भोजन, कृषि श्रम में भाग लेने आदि जैसे घरेलू कार्यों को संभालने में कई तरह के कर्तव्यों का पालन करती हैं, और सबसे महत्वपूर्ण भूमिका जो महिलाओं को अब अधिक जिम्मेदारी से निभाने की आवश्यकता है, वह है राजनीति में उनकी सक्रिय भागीदारी। महिलाओं का राजनीतिक सशक्तीकरण उनकी प्रमुख प्राथमिकताओं में से एक होना चाहिए और सरकार तथा समाज को महिलाओं को राजनीतिक क्षेत्र में भाग लेने के लिए इस तरह के कदम उठाने चाहिए। इसके लिए स्थानीय स्वशासन में भागीदारी प्रारंभिक कदम है, क्योंकि वे ग्रामीण लोगों के अधिक निकट हैं। पंचायती राज संस्थाओं को हमेशा से सुशासन का साधन माना जाता रहा है और 73वां संविधान संशोधन इस उम्मीद में किया गया था कि इससे बेहतर शासन होगा और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा महिलाओं जैसे समाज के वंचित वर्ग को राजनीतिक स्थान मिलेगा। संसद द्वारा 73वाँ संविधान संशोधन ने संविधान के भाग-4 के राज्य के नीति निदेशक तत्व के अनुच्छेद-40 के संकल्पना को क्रियान्वित किया है। विकेन्द्रीकृत लोकतांत्रिक स्वशासन की जमीनी इकाइयों के रूप में काम करने वाली पंचायती राज संस्थाओं को ग्रामीण भारत में सामाजिक-आर्थिक बदलाव का साधन माना गया है। यह शोध पत्र लोकतंत्र को मज़बूत करने, लोकतंत्र को समावेशी बनाने, लोकतंत्र में लैंगिक समानता को मज़बूत करने और महिलाओं को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने में पंचायती राज संस्थानों की भूमिका का मूल्याँकन करता है।
स्थानीय स्तर पर 73वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 में निर्णय लेने तथा विकास की योजना तैयार करने में महिलाओं की भागीदारी के लिए दो महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं। इस संशोधन में प्रावधान किया गया है कि कम से कम एक तिहाई महिलाएँ पंचायतों की सदस्य तथा अध्यक्ष होंगी। ज़मीनी स्तर पर ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी सामाजिक-आर्थिक विकास लाने का सबसे महत्वपूर्ण साधन है। पंचायती राज को सत्ता का विकेंद्रीकरण लोगों को सशक्त बनाने और निर्णय लेने की प्रक्रिया में उन्हें शामिल करने के साधन के रूप में देखा जाता है। स्थानीय सरकारें लोगों के करीब होने के कारण स्थानीय जरूरतों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकती हैं और संसाधनों का बेहतर उपयोग कर सकती हैं। बिहार सरकार ने ग्रामीण महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए कई ऐसे उपाय किए हैं जिसे अन्य राज्यों ने भी अंगीकार किया है। बिहार देश का प्रथम राज्य है जिसने वर्ष 2006 में महिलाओं को स्थानीय निकायों में सभी पदों पर पचास प्रतिशत आरक्षण दिया है। बिहार के इस सार्थक पहल से ग्रामीण शासन में लैंगिक असंतुलन खत्म हो गया है, लैंगिक रूढ़िवादिता टूट रही है। सशक्तीकरण का आनंद लेने वाली महिलाओं ने बदलाव लाना शुरू कर दिया है, क्योंकि यह धीरे-धीरे न केवल जमीनी स्तर की राजनीति में पुरुष-प्रधान माहौल को बदलने में मदद करेगा, बल्कि कार्यबल में उनकी बहुत जरूरी भागीदारी में भी सुधार करेगा। पंचायत स्तर पर महिलाओं के लिए आरक्षण ने निश्चित रूप से उनके सशक्तिकरण में योगदान दिया है, क्योंकि 2006 से उनके मतदान व्यवहार में बदलाव आया है। 2010 से लगातार मतदान में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक रही है। इसने लैंगिक भागीदारी और समानता के माध्यम से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत किया है और अब जमीनी स्तर की राजनीति में उनकी भागीदारी ऊपर की ओर दबाव बनाएगी। यह शोध पत्र बिहार सरकार द्वारा पंचायती राज संस्थानों में महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण देने एवं इसके ग्रामीण महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण में योगदान का विश्लेषण करता है।