भारतीय राजनीतिक एवं दार्शनिक चिंतन की परंपरा अत्यंत प्राचीन, समृद्ध और बहुआयामी रही है। इस परंपरा में आधुनिक काल में जिन विचारकों ने भारतीय समाज, संस्कृति और राष्ट्र के समग्र उत्थान के लिए वैकल्पिक चिंतन प्रस्तुत किया, उनमें महात्मा गांधी और पंडित दीन दयाल उपाध्याय का स्थान विशेष रूप से उल्लेखनीय है। गांधी ने औपनिवेशिक शासन के प्रतिरोध में नैतिकता, सत्य, अहिंसा और विकेन्द्रीकृत समाज-व्यवस्था पर आधारित एक वैकल्पिक आधुनिकता का प्रतिपादन किया, वहीं दीन दयाल उपाध्याय ने स्वतंत्र भारत के संदर्भ में ‘एकात्म मानववाद’ के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों पर आधारित सामाजिक-आर्थिक एवं राजनीतिक दर्शन प्रस्तुत किया।
यह शोध-पत्र गांधीवादी दर्शन और दीन दयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद के बीच वैचारिक संबंधों, समानताओं और भिन्नताओं का समीक्षात्मक अध्ययन करता है। शोध का उद्देश्य यह स्पष्ट करना है कि किस प्रकार एकात्म मानववाद गांधी विचार से प्रेरणा ग्रहण करते हुए भी भारतीय राष्ट्रवाद, संस्कृति और विकास की एक विशिष्ट दृष्टि प्रस्तुत करता है। अध्ययन में यह तर्क स्थापित किया गया है कि दोनों विचारधाराएँ पश्चिमी भौतिकवादी विकास मॉडल के विकल्प के रूप में नैतिकता, मानव गरिमा और सामाजिक समरसता को केंद्र में रखती हैं, किंतु उनके वैचारिक बल-बिंदुओं और ऐतिहासिक संदर्भों में महत्वपूर्ण अंतर भी विद्यमान हैं।