भारत की विदेश नीति पर आर्थिक उदारीकरण (1991) का प्रभाव एवं व्यापार, निवेश तथा रणनीतिक संबंधों का विश्लेषण (1991–2018)
Author(s): शर्मिष्ठा शंभु, वेद ब्यास मुनि
Abstract: यह शोध-पत्र भारत की 1991 की आर्थिक उदारीकरण नीति के पश्चात उसकी विदेश नीति में आए व्यापक परिवर्तन का विश्लेषण करता है, जिसमें व्यापार, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और रणनीतिक संबंधों की दिशा में आए बदलावों की विस्तृत समीक्षा की गई है। आर्थिक सुधारों ने ‘लाइसेंस राज’ को समाप्त कर दिया, अधिकतम सीमा शुल्क दरों को लगभग 150% से घटाकर 10% तक लाया गया तथा एक खुले बाज़ार की ओर भारत को अग्रसर किया गया, जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश का द्वार खुला। भारत का कुल व्यापार (सामान और सेवाएँ मिलाकर) सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 16% वर्ष 1990–91 में था, जो 2009–10 तक बढ़कर 47% तक पहुँच गया। वर्ष 2018 तक भारत का निर्यात 300 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया, जबकि आयात में भी अत्यधिक वृद्धि हुई, जिससे कुल व्यापार घाटा 162 अरब डॉलर तक पहुँच गया। विदेशी निवेश जो 1991 से पूर्व प्रति वर्ष लगभग 200 मिलियन डॉलर था, वह 2010 के दशक में कई अरब डॉलर तक पहुँच गया। इन आर्थिक परिवर्तनों ने भारत की विदेश नीति को अधिक सक्रिय, व्यावहारिक और वैश्विक साझेदारियों के लिए उपयुक्त बना दिया। भारत ने ‘पूर्व की ओर देखो’ नीति के माध्यम से ASEAN देशों से निकटता बढ़ाई, जिसके परिणामस्वरूप ASEAN-भारत मुक्त व्यापार समझौता जनवरी 2010 से लागू हुआ। इसी प्रकार, भारत और अमेरिका के बीच 2008 का असैन्य परमाणु समझौता, भारत की वैश्विक स्थिति में सुधार और आर्थिक शक्ति के रूप में उभरने का प्रमाण था। यह शोध सरकारी आँकड़ों, विश्व बैंक, UNCTAD की रिपोर्टों एवं शोध लेखों के आधार पर यह विश्लेषण प्रस्तुत करता है कि किस प्रकार भारत की बढ़ती आर्थिक भागीदारी ने उसकी विदेश नीति को रणनीतिक स्तर पर नया आयाम प्रदान किया।
DOI: 10.33545/26646021.2025.v7.i9c.681Pages: 204-209 | Views: 71 | Downloads: 3Download Full Article: Click Here
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शर्मिष्ठा शंभु, वेद ब्यास मुनि.
भारत की विदेश नीति पर आर्थिक उदारीकरण (1991) का प्रभाव एवं व्यापार, निवेश तथा रणनीतिक संबंधों का विश्लेषण (1991–2018). Int J Political Sci Governance 2025;7(9):204-209. DOI:
10.33545/26646021.2025.v7.i9c.681