बिहार की चुनावी राजनीति में पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों की भूमिका: 1990-2024
Author(s): महेश कुमार पिन्टू
Abstract: लोकतंत्र में चुनावी प्रक्रिया की महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि इसके द्वारा लोगों की सहभागिता सुनिश्चित होती है। चुनावी राजनीति का संबंध उस राजनीति से होता है जो चुनाव प्रक्रिया के संदर्भ में होता है। यद्यपि चुनाव किसी विशेष समय में होते है जबकि चुनावी राजनीति चुनावों से पूर्व ही शुरू हो जाती है। लोकतंत्र में चुनावी राजनीति एक व्यापक अवधारणा है जिसके अंतर्गत लोकतंत्र की बहुत महत्वपूर्ण प्रक्रियाएँ शामिल है। चुनावी राजनीति में राजनीतिक दलों, नेताओं, सांस्कृतिक संगठनों, धार्मिक संगठनों, जातीय संगठनों, जातीय समूहों, दबाव समूहों इत्यादि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लोकतंत्र में चुनावी राजनीति की भूमिका महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से मतदाता की सहभागिता होती है। समाज के विभिन्न समूहों से लोगों का चुनावों में भाग लेना लोकतंत्र की सफलता के प्रमुख मापदंड माने जाते है। भारत का संविधान सार्वभौम वयस्क मताधिकार का अधिकार देता है जिसके माध्यम से विभिन्न समाज के लोग चुनावी राजनीति प्रक्रिया में शामिल होते है। सैन्य तानाशाह भी चुनावी राजनीति के माध्यम से अपनी सत्ता को जनता की नजर में न्यायोचित साबित करने की कोशिश करता है। इस शोध में चुनावी राजनीति के महत्व को रेखांकित किया जाएगा।
भारत में इंदिरा गांधी सरकार के द्वारा जून 1975 में आपातकाल लगाया गया था। इस आपातकाल का देशव्यापी विरोध हुआ। इस आपातकाल के बाद हुए चुनाव में वर्ष 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी थी। जनता पार्टी की सरकार ने बी॰ पी॰ मंडल की अध्यक्षता में पिछड़ों की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति को जानने और उनके बेहतरी के लिए दिसम्बर 1978 में पिछड़ी आयोग का गठन किया था। यह पिछड़ा आयोग मंडल आयोग के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मंडल आयोग द्वारा वर्ष 1980 में रिपोर्ट सरकार को समर्पित किया गया। मंडल आयोग की रिपोर्ट को बी॰ पी॰ सिंह की सरकार ने लागू किया था। इसके तहत पिछड़े वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। इसके साथ ही मंडल आयोग ने पिछड़े जातियों की राजनीति को एक दिशा दिया। मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करवाने में बिहार के प्रमुख नेताओं कर्पूरी ठाकुर, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, शरद यादव, रामविलास पासवान, कांशीराम और जार्ज फर्नांडीस इत्यादि नेताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस रिपोर्ट के लागू हो जाने के बाद बिहार के नए राजनीतिक समीकरण में पिछड़ी एवं अत्यंत पिछड़ी जातियों ने बिहार की चुनावी राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना शुरू किया। बिहार में वर्ष 1990 से वर्ष 2024 तक हुए लोकसभा और विधान सभा के चुनाव में पिछड़ी जातियों ने अहम भूमिका निभायी है। बिहार में पिछड़ी जाति और अति पिछड़ी जातियों की बहुसंख्यक आबादी है जिसके कारण भी चुनावी राजनीति में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। इस शोध में बिहार में चुनावी राजनीति में पिछड़ी एवं अत्यंत पिछड़ी जातियों की भूमिका का मूल्याँकन किया जाएगा।
DOI: 10.33545/26646021.2025.v7.i8b.632Pages: 128-136 | Views: 115 | Downloads: 14Download Full Article: Click Here
How to cite this article:
महेश कुमार पिन्टू.
बिहार की चुनावी राजनीति में पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों की भूमिका: 1990-2024. Int J Political Sci Governance 2025;7(8):128-136. DOI:
10.33545/26646021.2025.v7.i8b.632