Abstract: छोटानागपुर और संथाल परगना क्षेत्र में ब्रिटिश शासन के शोषण, दमन और परंपरागत व्यवस्थाओं में हस्तक्षेप के खिलाफ अनेकों प्रतिरोध, विद्रोह और आंदोलन हुए हैं। लेकिन 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में एक नए तत्व का समावेश हुआ, वह था अलग झारखण्ड राज्य की माँग। झारखण्ड राज्य की माँग केवल राजनीतिक स्वायत्तता के लिए नहीं बल्कि आर्थिक मुक्ति और सांस्कृतिक, सामाजिक, पुनर्जागरण एवं पुनर्गठन के उद्देश्य को लेकर हुई। भारत के ज्यादातर राज्यों के निर्माण के मूल में भाषा एक कारक के रूप में रहा है। लेकिन झारखण्ड राज्य की मांग यहाँ की समाज, संस्कृति एवं भाषा की अस्मिता और संरक्षण साथ ही स्थानीय जनता को शासन-प्रशासन, नीति निर्माण एवं निर्णय और रोजगार में अधिक से अधिक भागीदारी मिले इन मुद्दों को लेकर शुरू हुई थी। इस तरह से झारखण्ड आंदोलन वर्गीय, जातीय और आर्थिक शोषण का राजनीतिक विस्फोट के रूप में उभरकर सामने आया। अलग झारखण्ड राज्य की मांग को छोटानागपुर तथा संथाल परगना क्षेत्र में हुए विभिन्न पुनरूत्थानवादी और प्रतिक्रियावादी सामाजिक आंदोलनों ने आधार एवं प्रेरणा प्रदान किया। सामाजिक आंदोलन न केवल लोगों के अन्दर विभिन्न सामामजिक समस्याओं के समाधान के प्रति बैचेनी और सामाजिक घटनाओं को एक स्वरूप प्रदान करता है अपितु राजनीतिक गतिविधियों हेतु पृष्ठभूमि एवं आधार का भी निर्माण करता है।
डॉ॰ शुचि संतोष बरवार, राजीव कुमार महतो. झारखण्ड राज्य की मांग और सामाजिक आंदोलन की भूमिका . Int J Political Sci Governance 2025;7(5):110-119. DOI: 10.33545/26646021.2025.v7.i5b.532