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International Journal of Political Science and Governance
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P-ISSN: 2664-6021, E-ISSN: 2664-603X, Impact Factor (RJIF): 5.92
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2024, Vol. 6, Issue 2, Part E

एकात्म मानववाद बनाम पश्चिमी उदारवाद: एक तुलनात्मक अध्ययन


Author(s): डॉ. सुनील कुमार पंडित

Abstract:
20वीं सदी के उत्तरार्ध में भारत जब राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त कर चुका था लेकिन सांस्कृतिक, आर्थिक और वैचारिक दृष्टि से एक उपयुक्त मार्गदर्शन की तलाश में था, तब पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने “एकात्म मानववाद” के रूप में एक स्वदेशी और सांस्कृतिक रूप से सुसंगत दर्शन प्रस्तुत किया । यह दर्शन न केवल राजनीतिक विचारधारा के रूप में उभरा, बल्कि एक ऐसी जीवन दृष्टि भी बना, जो भारतीय समाज की आत्मा, उसकी परंपराओं, मूल्यों, और ऐतिहासिक अनुभवों से गहराई से जुड़ा हुआ था । उपाध्याय जी का यह दर्शन उस समय और भी प्रासंगिक हो गया जब स्वतंत्र भारत पश्चिमी लोकतांत्रिक मॉडल्स, समाजवाद, साम्यवाद और पूंजीवाद के बीच अपनी पहचान बनाने का प्रयास कर रहा था । “एकात्म मानववाद” भारतीय तत्वज्ञान की मूल अवधारणाओं जैसे कि ऋता, धर्म, पुरुषार्थ, और समत्व पर आधारित है । यह व्यक्ति को केवल एक आर्थिक या भौतिक इकाई नहीं मानता, बल्कि उसे शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा के एक समन्वित स्वरूप के रूप में देखता है । इसके अनुसार, समाज कोई यांत्रिक संरचना नहीं है, बल्कि वह एक जैविक इकाई है, जिसमें सभी वर्ग, जातियाँ, क्षेत्र और संस्कृतियाँ एक दूसरे के साथ सह-अस्तित्व और समरसता में जुड़े हुए हैं । यह समग्र दृष्टिकोण “सर्वे भवन्तु सुखिनः” तथा “वसुधैव कुटुम्बकम्” जैसे शाश्वत भारतीय सिद्धांतों को व्यावहारिक जीवन में उतारने की प्रेरणा देता है । इसके विपरीत, पश्चिमी उदारवाद, जो कि मुख्यतः यूरोप में 17वीं और 18वीं शताब्दी के प्रबोधन युग से विकसित हुआ, व्यक्ति की स्वतंत्रता, निजी संपत्ति, संविदात्मक शासन और स्वतंत्र बाजार अर्थव्यवस्था की अवधारणाओं पर बल देता है । इसमें राज्य की भूमिका को न्यूनतम माना गया है और व्यक्ति के अधिकारों को सर्वोच्चता दी गई है । यह विचारधारा भले ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बढ़ावा देती है, परंतु इसमें आध्यात्मिक उद्देश्य, सामाजिक उत्तरदायित्व, और सांस्कृतिक परंपराओं के लिए अपेक्षित संवेदनशीलता की कमी पाई जाती है । इसकी अत्यधिक व्यक्तिगतता और उपभोक्तावाद पर आधारित संरचना ने सामाजिक विघटन, आर्थिक असमानता और नैतिक पतन को भी जन्म दिया है ।
भारत जैसे बहुसांस्कृतिक और बहुस्तरीय समाज के लिए पश्चिमी उदारवाद की सीमाएँ स्पष्ट हो जाती हैं । जहाँ एकात्म मानववाद जीवन के समस्त पहलुओं - सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और आत्मिक - के समन्वय की बात करता है, वहीं उदारवाद केवल व्यक्तिवादी और भौतिक प्रगति को ही प्राथमिकता देता है । यह अंतर विशेषतः ग्रामीण भारत, पारंपरिक कुटुंब व्यवस्था, और भारतीय जीवनशैली के संदर्भ में गहरा हो जाता है, जहाँ सामाजिक बंधन, सहअस्तित्व और नैतिक मूल्य आज भी केंद्रीय भूमिका निभाते हैं । इस शोध लेख का उद्देश्य इन्हीं दो प्रमुख वैचारिक धाराओं - एकात्म मानववाद और पश्चिमी उदारवाद - का तुलनात्मक एवं आलोचनात्मक विश्लेषण करना है, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि भारत जैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध, परंतु सामाजिक-आर्थिक विषमताओं से ग्रस्त राष्ट्र के लिए कौन-सी विचारधारा अधिक व्यावहारिक, नैतिक और स्थायी विकास की आधारशिला बन सकती है । जब आज की वैश्विक व्यवस्था विभिन्न प्रकार के संकटों - जैसे आर्थिक असमानता, सांस्कृतिक क्षरण, नैतिक भ्रम और सामाजिक विघटन - से जूझ रही है, तब एकात्म मानववाद का समग्र, संतुलित और आध्यात्मिक दृष्टिकोण न केवल भारत बल्कि वैश्विक मानवता के लिए भी एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है । अतः यह अध्ययन केवल दो वैचारिक प्रतिमानों की तुलना भर नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर विमर्श है कि भारत को अपनी मूल आत्मा के अनुरूप किस प्रकार का वैचारिक, सामाजिक और आर्थिक ढांचा अपनाना चाहिए जो उसे न केवल आत्मनिर्भर और समरस बनाए, बल्कि वैश्विक मंच पर भी एक सशक्त सांस्कृतिक पहचान दिला सके ।



DOI: 10.33545/26646021.2024.v6.i2e.645

Pages: 405-411 | Views: 359 | Downloads: 3

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How to cite this article:
डॉ. सुनील कुमार पंडित. एकात्म मानववाद बनाम पश्चिमी उदारवाद: एक तुलनात्मक अध्ययन. Int J Political Sci Governance 2024;6(2):405-411. DOI: 10.33545/26646021.2024.v6.i2e.645
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