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International Journal of Political Science and Governance
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P-ISSN: 2664-6021, E-ISSN: 2664-603X
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2024, Vol. 6, Issue 2, Part C

पर्यावरण संरक्षण और भारतीय संविधानः भारतीय संसद द्वारा पारित अधिनियमों का एक अध्ययन


Author(s): लता बोचीवाल एवं डाॅ. अनुपम चतुर्वेदी

Abstract: पर्यावरण की सुरक्षा हमारे सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं का एक हिस्सा है; इसके अलावा, एक स्वस्थ वातावरण कल्याणकारी राज्य के एक आवश्यक तत्व के रुप में कार्य करता है। पर्यावरण प्रदूषण समाज को प्रभावित करने वाली सबसे बड़ी सामाजिक समस्याओं में से एक कारक के रुप में उभरा है, जिसके कई दीर्घकालिक परिणाम हैं। हमारा देश अब समाजवाद के मूल उद्देश्य को पूरा करने के लिए बाध्य हैं, जो सभी को एक सभ्य जीवन स्तर प्रदान करता है, जो प्रदूषण मुक्त वातावरण में संभव हो सकता है। हमारे संविधान की प्रस्तावना के अनुसार, देश समाज के एक समाजवादी प्रारूप पर आधारित है जो सामाजिक समस्याओं पर अधिक ध्यान देता है। प्रारंभ में, भारत के सविधान ने पर्यावरण संरक्षण के लिए कोई प्रत्यक्ष प्रावधान नहीं किया है। जबकि 1970 के दशक में पर्यावरण की सुरक्षा के लिए वैश्विक जागरुकता बढ़ी है, स्टॉकहॉम सम्मेलन और पर्यावरण संकट के प्रति बढ़ती जागरुकता ने भारत सरकार को 1976 में में संविधान में 42वां संसोधन अधिनियमित करने के लिए प्रेरित किया है। पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, पर्यावरण को परिभाषित करता है। अधिनियम के रूप में जल, वायु और भूमि और अंतर संबद्ध जो हवा, पानी, भूमि और मनुष्य, अन्य जीवित प्राणियों, पौधों, सूक्ष्मजीवों और संपत्ति के बीच मौजूद है। वर्तमान में, भारतीय संविधान के मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद 14, 19, 21, 48ए और 51ए) स्पष्ट रूप से प्रत्येक नागरिक पर पर्यावरण की रक्षा करने की जिम्मेदारी डालते हैं। आज पर्यावरण संरक्षण से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों का ज्ञान अधिक से अधिक सार्वजनिक भागीदारी और पर्यावरण जागरुकता को प्रोत्साहित करने के लिए आवश्यक है, जो लोगों को पारिस्थितिकी तंत्र और पर्यावरण के संरक्षण के महत्व के प्रति संवेदनशील बनाएगा। संवैधानिक दृष्टिकोण केे परिणामस्वरूप, पंचायतो को स्थानीय क्षेत्र स्तर पर मृदा संरक्षण, जल प्रबंधन, वनीकरण, जैव विविधता संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण और पारिस्थितिकी पहलुओं को बढ़ावा देने जैसे उपाय करने का अधिकार दिया गया है। हालांकि हमारा देश अब गंभीरता से मापने योग्य सतत विकास और प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर पारिस्थितिकी संतुलन के रख रखाव और बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण के कारण पर्यावरणीय गिरावट के लिए प्रयास करता है।

DOI: 10.33545/26646021.2024.v6.i2c.378

Pages: 161-165 | Views: 218 | Downloads: 10

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How to cite this article:
लता बोचीवाल एवं डाॅ. अनुपम चतुर्वेदी. पर्यावरण संरक्षण और भारतीय संविधानः भारतीय संसद द्वारा पारित अधिनियमों का एक अध्ययन . Int J Political Sci Governance 2024;6(2):161-165. DOI: 10.33545/26646021.2024.v6.i2c.378
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