डॉ. भीमराव अंबेडकर का आर्थिक दर्शन और उसकी समकालीन प्रासंगिकता
Author(s): डॉ. महेश कुमार
Abstract: डॉ. भीमराव अंबेडकर को भारतीय समाज में एक महान सामाजिक सुधारक, संविधान निर्माता और दलितों के अधिकारों के सशक्त समर्थक के रूप में सम्मानित किया जाता है । हालांकि, उनके योगदान का दायरा केवल सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं था, बल्कि उनका आर्थिक चिंतन भी अत्यंत गहन और दूरदर्शी था । अंबेडकर ने भारतीय समाज की जटिल आर्थिक असमानताओं को गहरे स्तर पर समझा और उनका विश्लेषण किया । उनका मानना था कि भारतीय समाज में आर्थिक असमानता और शोषण के मूल कारण जातिवाद, असमान वितरण व्यवस्था और श्रमिक वर्ग के शोषण में निहित हैं । उन्होंने इस तथ्य को पहचानते हुए आर्थिक विचारों को केवल आर्थिक प्रगति तक सीमित न रखते हुए उसे सामाजिक न्याय और समग्र मानवता से जोड़ा । अंबेडकर का दृष्टिकोण था कि भारतीय समाज में आर्थिक विकास तभी संभव है जब उसका लाभ हर वर्ग और समुदाय तक पहुंचे । उन्होंने संसाधनों के समान वितरण, श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा और आर्थिक असमानताओं को समाप्त करने की दिशा में कई विचार प्रस्तुत किए । उनके अनुसार, आर्थिक विकास केवल उत्पादन की वृद्धि तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसका लाभ समाज के निचले वर्गों तक पहुंचे, ताकि हर व्यक्ति को अपनी मेहनत का उचित पारिश्रमिक मिल सके । उनके लिए, समाज में आर्थिक समता और सामाजिक न्याय की प्राप्ति के बिना कोई भी विकास अधूरा था ।
उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद और उसकी आर्थिक प्रणाली को सशक्त रूप से चुनौती दी, जो दलितों और अन्य वंचित वर्गों को शोषण का शिकार बनाती थी । अंबेडकर ने इस शोषण को समाप्त करने के लिए श्रमिकों के अधिकारों को मान्यता दी और उनके लिए बेहतर कामकाजी परिस्थितियाँ सुनिश्चित करने के लिए कई उपायों का प्रस्ताव किया । उनका मानना था कि आर्थिक समता और सामाजिक न्याय एक-दूसरे से गहरे रूप से जुड़े हुए हैं, और बिना इन्हें सुनिश्चित किए हुए कोई भी समृद्धि अस्थायी और अस्वीकार्य होगी । आज जब भारत बेरोजगारी, आर्थिक असमानता, श्रमिक असुरक्षा और नवउदारवादी नीतियों के प्रभाव से जूझ रहा है, डॉ. अंबेडकर के आर्थिक विचार अत्यंत प्रासंगिक हो गए हैं । बेरोजगारी की बढ़ती समस्या, मजदूरी में असमानता, और बड़े-बड़े निगमों के बढ़ते लाभ के बीच श्रमिक वर्ग की स्थिति में गिरावट अंबेडकर के दृष्टिकोण की अनिवार्यता को और भी स्पष्ट करती है । उनके विचार हमें यह याद दिलाते हैं कि एक समृद्ध और न्यायपूर्ण समाज वही है, जिसमें सभी वर्गों को समान अवसर और अधिकार मिलें और हर व्यक्ति को अपनी मेहनत का उचित फल मिले । उनका मानना था कि जब तक समाज के सभी वर्गों के बीच आर्थिक और सामाजिक असमानताएँ दूर नहीं होतीं, तब तक कोई भी आर्थिक प्रगति वास्तविक नहीं हो सकती ।
उनकी नीतियाँ और दृष्टिकोण आज भी हमें प्रेरित करते हैं कि हम एक समावेशी और शोषणमुक्त समाज की ओर बढ़ें, जहाँ प्रत्येक नागरिक को समान अवसर मिलें और किसी भी व्यक्ति को उसके जन्म, जाति या सामाजिक स्थिति के आधार पर भेदभाव का सामना न करना पड़े । उनका आर्थिक दृष्टिकोण हमें यह समझने में मदद करता है कि एक सशक्त अर्थव्यवस्था तब ही संभव है, जब वह हर वर्ग के लिए न्यायपूर्ण हो, और उसकी प्रगति का लाभ सभी तक पहुंचे ।
DOI: 10.33545/26646021.2024.v6.i1e.644Pages: 387-391 | Views: 494 | Downloads: 5Download Full Article: Click Here
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डॉ. महेश कुमार.
डॉ. भीमराव अंबेडकर का आर्थिक दर्शन और उसकी समकालीन प्रासंगिकता. Int J Political Sci Governance 2024;6(1):387-391. DOI:
10.33545/26646021.2024.v6.i1e.644