भारत में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के रूप में स्थानीय स्वशासनः ऐतिहासिक सिंहावलोकन
Author(s): रेखा माथुर
Abstract:
भारत में स्थानीय स्वायत्त शासन की संस्थाएं अतीत काल से चली आ रही हैं फिर भी नगरी एवं ग्रामीण दोनों ही प्रकार की स्थानीय संस्थाओं का व्यवस्थित आरंभ 19वीं शताब्दी से माना जाता है। इन संस्थाओं के विकास के बीज विद्वानों ने मानव मन की प्रकृति में निहित माने। स्थानीय सरकार को मानव की मनोवैज्ञानिक और व्यावहारिक आवश्यकता के रूप में रेखांकित किया गया है। मानव की सदैव यह इच्छा रही है कि जो भी सरकार हो वह उसके स्वयं के द्वारा शासित और अच्छी सरकार होनी चाहिए। मानव अपनी प्रकृति से तो स्वकेंद्रित होता है। मानव मन की यही इच्छा अतीत काल से स्थानीय संस्थाओं के विकास का अंतरनिहित दर्शन रही है।
पंचायत जिन्हें ग्रामीण स्थानीय प्रशासन की सबसे लोकप्रिय इकाई माना जाता है, बहुत पुरानी संस्थाएं हैं जो अतीत में अपने आप में स्थानीय शासन की सामर्थ इकाइयां हुआ करती थी। प्राचीन काल में इसी पंचायत व्यवस्था के कारण प्रत्येक ग्रामीण समाज अपने आप में एक छोटा सा राज्य था और इसने भारत की जनता को एकता के सूत्र में बहुत अच्छी तरह बांध रखा था।
रेखा माथुर. भारत में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के रूप में स्थानीय स्वशासनः ऐतिहासिक सिंहावलोकन. Int J Political Sci Governance 2024;6(1):346-348. DOI: 10.33545/26646021.2024.v6.i1e.345