Author(s): डाॅ. मो. वसीम अकरम मोमिन एवं डाॅ. रुचि त्रिपाठी
Abstract:
वर्तमान समय में शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन करना दिन-प्रतिदिन आवश्यक होता जा रहा है। जो व्यक्ति विद्यालयीन शिक्षा अर्जित नहीं कर पाया, वह कौशल सीखता है। इस सोच को बदलना होगा। विश्व के विभिन्न देशों में हमारे भारत के कुशल युवाओं की मांग बढ़ रही है। देश के भीतर भी प्रशिक्षित व कौशलयुक्त कामगारों की मांग में बढ़ोत्तरी हुई है। शिक्षा एवं कौशल को जोड़ने के लिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में इसे सम्मिलित किया गया है।
प्राचीन शिक्षा प्रणाली से लेकर वर्तमान नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 तक शिक्षा व्यवस्था में कई बदलाव आए है। जो कि हमारी वर्तमान आवश्यकता के अनुरूप समय-समय पर किए गए है। शिक्षा मानव का सर्वांगीण विकास करती है। युवाओं के प्रेरणास्त्रोत रहे आध्यात्मिक विचारक स्वामी विवेकानंद के अनुसार ‘शिक्षा मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है।’ वर्तमान में शिक्षा के उद्देश्य एवं क्षेत्र व्यापक हो गए हैं। नैतिक विकास के साथ ही शिक्षा आजीविका चलाने के रूप में प्रशिक्षण हेतु भी महत्वपूर्ण हो गई है। विज्ञान एवं तकनीक का तीव्र विकास भी समावेशी एवं न्यायसंगत गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए अत्यधिक आवश्यक है।
भारत सरकार ने स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए ‘प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना’ जुलाई, 2015 में प्रारंभ की है। जिसका उद्देश्य ऐसे व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करना है जो कम पढ़े-लिखे हो या जिन्होने विद्यालय बीच में ही छोड़ दिया हो। सन् 2020 तक यह लक्ष्य ऐसे एक करोड़ युवाओं को प्रशिक्षित करना था। छात्रों का कौशल विकास यदि विद्यालयीन शिक्षा के साथ ही किया गया, तो पृथक से किए जाने वाले समय और धन का अपव्यय रोका जा सकता है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में व्यावसायिक पाठ्यक्रम सम्मिलित किया गया है। साथ ही पढ़ाई के मध्य से ही छात्र अपनी आवश्यकतानुसार तथा मनोवांछित कौशल का चयन कर विद्यालयीन शिक्षा के साथ-साथ कौशल में पारंगत हो सकता है। जिसमें स्थानीय विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षण दिया जाएगा।
डाॅ. मो. वसीम अकरम मोमिन एवं डाॅ. रुचि त्रिपाठी. समावेशी एवं न्यायसंगत गुणवत्तापूर्ण शिक्षा. Int J Political Sci Governance 2024;6(1):122-124. DOI: 10.33545/26646021.2024.v6.i1b.315