पूर्व की ओर देखो नीतिः भारत के परिपेक्ष्य में
Author(s): डाॅ. नगमा खानम
Abstract: भारत की विदेशनीति के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो पं. जवाहर लाल नेहरू के समय में अमेरिका, रूस और यूरोपीय देशों के प्रति भारत का झुकाव था। इसी क्रम में श्रीमती इन्दिरा गाँधी एवं राजीव गाँधी की निगाह दक्षिण एशिया देशों की तरफ गई किन्तु पी.वी. नरसिंम्हा राव पूरब की ओर आकर्षित हो रहे थे। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2014 में कहा कि ‘‘पूरब की ओर देखना ही पर्याप्त नहीं है, भारत को पूरब में सक्रिय होकर काम भी करना चाहिए।’’
भारत आसियान शिखर सम्मेलन वर्श 2017 भारत के लिए खास अहमियत रखता है। क्योंकि इस वर्ष भारत आसियान संवाद होने की 25वीं वर्षगांठ थी। साथ ही यह भारत आसियान साझेदारी का 15वां वर्ष भी था। इसका महत्व इस बात से भी और बढ़ जाता है कि दिल्ली में आयोजित 2018 के गणतंत्र दिवस समारोह में 10 विशिष्ट अतिथि आसियान देशों के राष्ट्राध्यक्ष थे। हमारी विदेशनीति का प्रमुख स्तम्भ भारत का आसियान देशों के साथ सम्बन्ध है और यह पूरब में काम करो की नीति की आधारशिला भी है।
भारत के साथ आसियान देशों की व्यापारिक रिश्तों की शुरूआत 1990 के दशक में हुई थी। भारत आसियान का सेक्टोरल पार्टनर 1992 में और डाॅय लाॅग पार्टनर 1996 में तथा शिखर स्तरीय पार्टनर 2002 में बना। हाॅलाकि भारत की मेजबानी में 25 जनवरी 2018 को आयोजित आसियान स्मारक शिखर सम्मेलन में 15 वर्ष शिखर स्तरीय पार्टनरशिप के तथा 5 वर्ष रणनीतिक भागीदारी के तथा 25 वर्ष सेक्टोरल पार्टनरशिप के मना चुका है।
आसियान देश भारत के साथ विभिन्न आर्थिक साझेदारी के साथ सामरिक सहयोग की भी आशा रखते हैं। भारत की पूर्व की ओर देखो नीति में आर्थिक सम्बन्धों पर भी जोर दिया गया। और इस नीति की विशेष बात यह थी कि जब भारत की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी ऐसे समय में इस नीति को क्रियान्वित किया गया। इस नीति के परिप्रेक्ष्य में ही भारत आसियान देशों के साथ आर्थिक सम्बन्ध मजबूत करने पर जोर दे रहा है। अब सिर्फ यह एक आर्थिक नीति नहीं वरन् लगातार बदलते वैश्विक माहौल में एक सफल सामरिक नीति एवं कूटनीति बनकर उभरी है।
DOI: 10.33545/26646021.2023.v5.i2c.273Pages: 153-156 | Views: 414 | Downloads: 9Download Full Article: Click Here
How to cite this article:
डाॅ. नगमा खानम.
पूर्व की ओर देखो नीतिः भारत के परिपेक्ष्य में. Int J Political Sci Governance 2023;5(2):153-156. DOI:
10.33545/26646021.2023.v5.i2c.273