झारखण्ड जंगलो, पहाड़ो, नदियों से आच्छादित भूमि है। यहाँ कि जनजातीय संस्कृति और भाषा भारतीय समाज की अमूल्य निधि है। झारखण्ड संघर्ष की धरती रही है। यहाँ कि जनजातियों ने अंग्रेजी सरकार, जमींदार, व्यापारियों और महाजनों के द्वारा किए जाने वाले दमन, शोषण, क्रूरता, पाश्विक अत्याचार और औपनिवेशिक घुसपैठ के प्रतिक्रिया स्वरूप समय-समय पर विद्रोह और आंदोलन करते रहे हैं। झारखण्ड के जनजातियों का जीवन जल, जंगल, जमीन से गहरा रूप से जुड़ा हुआ है साथ ही ये अपने भाषा, संस्कृति, पहचान और अस्मिता को लेकर सजग और जागरूक रहे हैं। इनके हितों और पहचान पर जब भी बाहरी हस्तक्षेप हुए हैं, तब-तब उसके खिलाफ में विद्रोह का संखनाद् हुआ है। प्रस्तुत शोध पत्र में झारखण्ड में जनजातीय विद्रोह के कारण और परिणाम पर प्रकाश डाला गया है। साथ ही शोध पत्र को सटिक बनाने के लिए द्वितीयक आँकड़ो का सहयाता लिया गया है।