भारत में समावेशी एवं सुलभ न्याय में ग्राम न्यायालयों की भूमिका
Author(s): सरिता यादव
Abstract: हमारे देश का पहला ग्राम न्यायालय 27 नवम्बर, 2010 को राजस्थान के बस्सी गांव में स्थापित किया गया था। ग्राम न्यायालय की स्थापना भारतीय विधि आयोग की 114वीं रिपोर्ट पर आधारित थी। यह रिपोर्ट भारत के विधि मंत्रालय को भेजी गई थी और इस रिपोर्ट पर भारत के विधि मंत्रालय ने विचार किया और इस संबंध में भारतीय संसद द्वारा ग्राम न्यायालय विधेयक पारित किया गया और उसके बाद "ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008" अस्तित्व में आया। भारतीय संसद द्वारा उठाया गया यह कदम भारतीय न्यायपालिका के कंधों से लंबित मामलों का बोझ कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम था। संसद और उच्च न्यायपालिका के सभी सदस्यों की आम राय थी कि ‘ग्राम न्यायालय’ आधुनिक भारत में न्याय का एक नया मॉडल है जो गांव स्तर पर त्वरित न्याय प्रदान करेगा और न्याय प्रशासन की स्थापना में भी भूमिका निभाएगा। विधि आयोग की 114वीं रिपोर्ट में विधि न्यायाधीशों की गुणवत्ता और ‘ग्राम न्यायालय’ के अधिकार क्षेत्र के बारे में विभिन्न प्रावधान किए गए थे और साथ ही इस न्यायालय के अंतर्गत आने वाले मामलों के प्रकारों के बारे में भी बताया गया था। इस रिपोर्ट में एक अलग न्यायिक नियुक्ति प्राधिकरण स्थापित करने की भी सिफारिश की गई थी जिसका नाम पंचायती राज न्यायिक प्राधिकरण था। इस रिपोर्ट के माध्यम से भारत के विधि मंत्रालय को दी गई आपराधिक और सिविल की अलग-अलग शक्तियों की सिफारिश पर विचार नहीं किया गया और कुछ परिवर्तनों के साथ संसद द्वारा ‘ग्राम न्यायालय’ अधिनियम, 2008 पारित किया गया, जिसमें आपराधिक और सिविल मामलों में अधिकारिता और शक्ति तथा प्रक्रिया, अपील प्रावधान जैसे विभिन्न प्रावधान शामिल हैं और आशा है कि ‘ग्राम न्यायालय’ राजस्थान राज्य में लंबित मामलों की संख्या को शीघ्रता से कम करने में सफल होगा।
सरिता यादव. भारत में समावेशी एवं सुलभ न्याय में ग्राम न्यायालयों की भूमिका. Int J Political Sci Governance 2023;5(2):57-60. DOI: 10.33545/26646021.2023.v5.i2a.411