Abstract: भारतीय राजनीति में दलबदल 1960 के दशक के बाद से एक गंभीर समस्या बनकर उभरा है। जनता चुनाव के माध्यम से राजनीतिक दल के उम्मीदवार या किसी निर्दलीय को अपना मत देकर संसद/राज्य विधानमंडलों में अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजती है ताकि वह सदन में उनके, हितों का प्रतिनिधित्व कर सके, लेकिन वह प्रतिनिधि धन और पद की लालसा में दल परिवर्तन कर अपनी निष्ठा बदल लेता है। इससे राजनीति में भ्रष्टाचार और अनैतिकता बढ़ती है तथा चुनी हुई सरकारों के स्थायित्व को खतरा पैदा होता है।इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार द्वारा संविधान में 52वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 के माध्यम से दसवीं अनुसूची को जोड़ा गया है। जिसमें दलबदल करने वाले सांसदों/विधायकों को संबंधित सदन की सदस्यता से अयोग्य घोषित करने का प्रावधान किया गया है। 91वें संविधान संशोधन अधिनियम 2003 के द्वारा इसमें कुछ और प्रावधान जोड़े गए हैं, लेकिन कानून के कई प्रावधानअस्पष्ट व विरोधाभासी हैं। जिसके कारण यह कानून आंशिक रूप से ही सफल रहा है। कानून लागू होने के बाद भी कई राज्यों में दलबदल के आधार पर सरकारी गिराई गई है। पिछली कुछ वर्षों में दल बदल के आधार पर गोवा 2017, कर्नाटक 2019, मध्य प्रदेश 2020, महाराष्ट्र 2022 आदि राज्यों में सरकार अल्पमत में आ गई और उनका विघटन हो गया। प्रस्तुत शोधपत्र में दल परिवर्तन के कारण, दलबदल विरोधी कानून के प्रावधान, कानून की खामियां, संबंधित प्रमुख न्यायिक निर्णय व सुधार हेतु दिए गए सुझावों का विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत किये गये हैं।