Abstract: राष्ट्रवाद के बारे में यह कहा जाता है कि इसकी कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है। इसे समय एवं परिस्थितियों के अनुसार विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से परिभाषित किया है। पश्चिम का राष्ट्रवाद जो कि धर्म, भाषा या क्षेत्र पर आधारित रहा हैं। इसे भारत अमेरिका एवं चीन जैसे विविधता पूर्ण राष्ट्रों पर लागू नहीं किया जा सकता है इन राष्ट्रों में सांस्कृतिक एवं सभ्यतात्मक राष्ट्रवाद हमेशा विद्यमान रहा है इसीलिए यह राष्ट्र हजारों वर्षों तक एकता के सूत्र में बंधे रहे हैं। विभिन्न बाहरी शक्तियों द्वारा आक्रमण एवं साम्राज्य के बाद भी भारत अपनी एकता को बनाए रखने में सक्षम रहा हैं हालांकि अंग्रेजों की कुटिल चाल विभाजित करो और राज करो के कारण धार्मिक आधार पर भारत का विभाजन हुआ जो लंबे समय तक सही साबित नहीं हुआ। सन् 1971 में ही बांग्लादेश के रूप में पाकिस्तान का विभाजन भाषा के आधार पर हो गया हैं। अतः यह कहा जा सकता हैं कि भारत में सांस्कृतिक एवं सभ्यतात्मक राष्ट्रवाद हमेशा विद्यमान रहा है तथा इसी भावना के कारण आगे भी भारत अक्षण्णु बना रहेगा।