Abstract: दुनिया भर में मरती नदियों के पीछे कारण बढ़ता शहरीकरण तथा घटते गांव है। विकसित तथा विकासशील सभी देशों ने अपनी नदियों को पिछले 20 वर्षों में खोया है। पानी की मात्रा तथा गुणवत्ता का नुकसान आज दिखाई दे रहा है। शहरों का कचरा ढोती नदियां मरने के कगार पर है। यही हाल ग्लेशियरों का भी है। जलवायु परिर्वतन से बढ़ता तापमान ग्लेशियरों पर हमला कर रहा है। शहरों की बढ़ती बिजली, पानी की आवश्यकता गांव के हिस्से को लील चुकी है। जलवायु परिर्वतन से सबसे अधिक प्रभाव हिमालय पर पड़ा है। भारतीय हिमालय यूवा है लेकिन विश्व स्तर पर हिमालय क्षेत्र के बारे में बहुत कम ध्यान गया है। पृथ्वी की सभी भागों की पीड़ा को समझना होगा। नये-नये आविष्कार पहले से ठाठ से जी रही जनता को तुष्ट करने में लगी है। जबकि बड़ी आबादी मौलिक आवश्यक्ताओं से वंचित है। उत्तराखण्ड में राज्य संरक्षित खनन ने नदियों और पहाड़ों के अस्तित्व को खतरें मे डाल दिया है। सदाबहार नदियां दम तोड़ने लगी है तथा जलचक्र प्रभावित है। नन ग्लेशियर पर नदियों पर छोटे-छोटे खाव बनाकर जीवनदान देना होगा। पश्चिमी दर्शन इस्तेमाल करों और फेंको की नीति की जगह पर्यावरण समर्थित भारतीय दर्शनवाली जीवनशैली अपनानी होगी। जागरूकता और जनसहभागिता से सफलता मिलेगी न कि केवल कागजी सरकारी योजनाओं से। कभी सदा बहने वाली गगास नदी की आज 95 प्रतिशत धाराऐं सुख गई है जो अन्तिम सांसे गिन रही है। पानी बचाने की नही पानी उगाने की मुहित छेडनी है। नदी, पर्यावरण व जंगल में सामंजस्य बिठाना है विस्तृत शोध में परिकल्पना के समस्या के कारणों, प्रभावों, समाधानों को खोजने का प्रयास किया है।