Abstract: द्वितीय विश्वयुद्धोत्तर आर्थिक स्थितियों पर नजर डाले तो यह स्पष्ट होता है कि संतुलित विकास और संतुलित सम्पन्नता के लिए मानव मात्र को अनावश्यक गरीबी, निर्धनता व मजबूरी और बेबसी से उबारने के लिये एक नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को स्वीकार करना आवश्यक है। इन राष्ट्रांे ने निरंतर नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की मांग की। आंदोलन ने जुलाई 1962 में आयोजित आर्थिक विकास की समस्याओं पर सम्मेलन में पहली बार आर्थिक विकास का उल्लेख किया था। काहिरा सम्मेलन में मुख्य बल सहायता और सुधार व्यापार सम्बन्धों पर दिया गया। लुसाका शिखर सम्मेलन में गुटनिरपेक्ष देशों ने आर्थिक एवं विकास सम्बन्धी मामलों पर विकसित या औद्योगिक देशों के साथ सामान्य पहल का संकल्प लिया। अल्जीरियर्स शिखर सम्मेलन में प्रस्ताव किया गया कि संयुक्त राष्ट्र संघ महासचिव से कहा जाये की उच्च राजनीति के स्तर पर महासभा का अधिवेशन बुलाया जाये जिसमें केवल विकास समस्याओं पर ही विचार विनिमय किया जाये। अल्जीरियर्स का आह्वाहन अनसूना नहीं किया गया। असल में तो गुटनिरपेक्ष देशों की इसी पहल के फलस्वरूप ही 1974 के आरंभ में संयुक्त राष्ट्र महासभा का 6वां विशेष अधिवेशन बुलाया जिसमें 1 मई 1974 को नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था स्थापित करने की घोषणा व एक कार्यवाही योजना का ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया। नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था आज की प्रमुख मांग है जिसे गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने ही निरंतर परवान चढ़ाया है अतः यह भी इस आंदोलन की एक बड़ी उपलब्धि है।